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Tuesday, February 16, 2021

होमवर्क नहीं करा पाई तो मां ने लिखा लिया बेसिक स्कूल में नाम

 

कहते हैं कि सबसे अच्छा सबक हालात सिखाते हैं। कुछ ऐसा ही हुआ हैदरगढ़ क्षेत्र के पूरेअजान का पुरवा मजरे रानीपुर गांव की 26 वर्षीय सीतापति के साथ। बच्चों ने होम वर्क कराने को कहा तो पढ़ी-लिखी न होने के कारण वह नहीं करा सकी। इस शìमदगी से बचने के उन्होंने पढ़ाई करने का संकल्प लिया और उसी स्कूल में अपना दाखिला कराया जहां उसके बच्चे पढ़ते थे। वह होमवर्क कराने में भी मदद कर रही हैं।

होमवर्क नहीं करा पाई तो मां ने लिखा लिया बेसिक स्कूल में नाम


शिक्षिका के पत्र ने झकझोरा : सीतापति ने बताया कि विद्यालय की शिक्षिका प्रीतू सिंह ने एक चिट्ठी लिखकर भेजा, जिसे खुद न पढ़ सकी। गांव के एक व्यक्ति से पढ़वाई तो पता चला कि इसमें बच्चों का होमवर्क पूरा न होने की बात लिखी गई थी। इस संबंध में स्कूल आकर बताने को भी कहा गया था। इसके बाद सीतापति ने विद्यालय पहुंचकर शिक्षिका प्रीतू सिंह को बताया कि मैं और मेरे पति अनपढ़ हैं। पति एक निजी डेयरी पर मजदूरी करते हैं। शिक्षिका से खुद को पढ़ाने का आग्रह किया। इस शिक्षिका ने खंड शिक्षा अधिकारी हैदरगढ़ नवाब वर्मा से अनुमति लेकर उसका दाखिला कर लिया। उसमें पढ़ने की ललक को देखते हुए कॉपी, किताब व कलम अपने पैसों से खरीद कर दिया। सीतापति घर का कामकाज करने के बाद स्कूल आकर शिक्षिका से पढ़ने लगी। वह अब लिखने पढ़ने लगी है। महिला का कहना है कि अब हम अपने बच्चों को पढ़ा सकते हैं।


खुद की जिंदगी में शिक्षा की रोशनी लाने के साथ अब बच्चों का होमवर्क कराने में भी बन रहीं मददगार


बाराबंकी के हैदरगढ़ के प्राथमिक विद्यालय पूरे अजान मजरे रानीपुर में बच्चों के संग पढ़ाई करतीं सीतापति और पढ़ातीं सहायक अध्यापक प्रीतू सिंह ’ जागरण


पति-पत्नी दोनों हैं अनपढ़


पूरेअजान का पुरवा मजरे रानीपुर के राम सागर और उनकी पत्नी सीतापति दोनों पढ़े लिखे नहीं हैं। इनके शुभी व राज दो बच्चे हैं। इसमें प्राथमिक विद्यालय पूरे अंजान में शुभी कक्षा दो में पढ़ती है, जबकि राज आंगनबाड़ी में पढ़ता है। रामसागर मजदूरी कर परिवार का जीवन यापन करता है। सीतापति बताती हैं कि बीते वर्ष स्कूल से बच्चों को होमवर्क दिया गया था। बच्चों ने होमवर्क पूरा कराने को कहा तो हम दोनों का अनपढ़ होना इसमें बाधा बना। इतना पैसा नहीं था कि बच्चों को कोचिंग ही करा सकें। इसलिए बच्चों को स्कूल में आए दिन शिक्षकों की डांट सुननी पड़ती थी।


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