पटना। राज्य के कई और जिलों के भी जिला शिक्षा पदाधिकारी कार्यालय शिक्षा विभाग के रडार पर हैं।
शिक्षा विभाग के अपर मुख्य सचिव डॉ. एस. सिद्धार्थ के निर्देश पर करायी गयी जांच में जैसी अनियमितताएं पटना जिला शिक्षा पदाधिकारी कार्यालय में पायी गयीं, वैसी ही अनियमितताएं और भी कई जिलों के जिला शिक्षा पदाधिकारी कार्यालयों में बरते जाने की प्रबल संभावना है। इस बात की भी संभावना जतायी जा रही है कई जिलों के जिला शिक्षा पदाधिकारी कार्यालय तो अनियमितताओं के मामले में पटना जिला शिक्षा पदाधिकारी कार्यालय में पकड़ी गयीं अनियमितताओं से भी आगे हैं।
आपको याद दिला दूं कि शिक्षा विभाग के अपर मुख्य सचिव डॉ. एस. सिद्धार्थ द्वारा विभाग के विशेष सचिव डॉ. सतीश चन्द्र झा से पटना जिला शिक्षा पदाधिकारी कार्यालय में व्याप्त अनियमितताओं से जुड़ी शिकायतों की जांच करायी थी। यह जांच पिछले सोमवार को हुई थी। जांच रिपोर्ट के आधार पर अनियमितताओं के जिम्मेवार कर्मचारियों और अधिकारियों पर काररवाई भी हुई है। लेकिन, जांच के दौरान चौंकाने वाले तथ्य उजागर हुए। अनियमितताओं का अंदाजा इसी
से लगाया जा सकता है कि दिलीप कुमार एवं गोपाल कुमार नामक लिपिक जो छह जुलाई को स्थानांतरित होने के बाद भोजपुर जिला शिक्षा पदाधिकारी कार्यालय में कार्यरत हैं, ने अपने प्रतिस्थानी लिपिकों को 15 जुलाई तक प्रभार नहीं सौंपा था। उस दिन देर शाम को दोनों लिपिक पटना जिला शिक्षा पदाधिकारी कार्यालय में हाजिर हुए और जांच कर रहे विशेष सचिव को संगत दस्तावेज उपलब्ध कराये। दोनों लिपिकों द्वारा पटना जिला शिक्षा पदाधिकारी कार्यालय में
जांच में पायी गयी अनियमितताओं के बाद तय हो रही रणनीति
पदस्थापन के दौरान आवंटित कार्यों का निष्पादन मनमानेपूर्ण तरीके से नियमों की उपेक्षा करते हुए किये जाने का साक्ष्य जांच के क्रम में मिले। जांच के दौरान एक अन्य लिपिक सुनील कुमार पर कतिपय माध्यमिक शिक्षकों द्वारा यह आरोप लगाया गया कि उनके वेतन भुगतान के क्रम में आयकर कटौती के मद में कटौती की गयी राशि को आयकर अधिनियम की गलत धारा 194 में बुक कर दिया गया, जबकि उसे धारा 192 के तहत बुक किया जाना था।
जांच के क्रम में पाया गया कि पटना जिला शिक्षा पदाधिकारी कार्यालय में मातृत्व अवकाश एवं
बकाया भुगतान संबंधी आवेदन की प्राप्ति और उसके निष्पादन की तिथि के संबंध में कोई रजिस्टर मेंटेन नहीं किया जाता है। कतिपय शिक्षकों से प्राप्त आवेदन की मूल प्रति भी संचिका में संधारित नहीं है। संचिका के टिप्पणी भाग में आवेदन प्राप्त होने की तिथि का कोई उल्लेख भी नहीं पाया गया। प्रभारी लिपिक द्वारा संचिका प्रधान लिपिक को भेजे बिना सीधे जिला कार्यक्रम पदाधिकारी स्थापना) को पृष्ठांकित कर अनुमोदन प्राप्त किया जाता था। इस पर जिला कार्यक्रम पदाधिकारी स्थापना) द्वारा कभी किसी प्रकार की पृच्छा भी नहीं की गयी।
अधिकांश मामलों में यह चौंकाने वाला तथ्य भी सामने आया कि जिस तिथि को संचिका उपस्थापित की गयी, उसी तिथि को भुगतान भी हो गया। इस लापरवाही एवं समुचित अनुश्रवण नहीं किये जाने के लिए प्राथमिक शिक्षकों की स्थापना के प्रधान लिपिक करुण कुमार सिन्हा एवं माध्यमिक शिक्षकों की स्थापना के प्रधान लिपिक अलोक कुमार वर्मा को जिम्मेदार बताया गया। इसका अनुश्रवण जिला कार्यक्रम पदाधिकारी (स्थापना) द्वारा भी कभी नहीं किया गया। जांच में जिला कार्यक्रम पदाधिकारी (स्थापना) अरुण कुमार मिश्रा की भूमिका को संदेहास्पद बताया गया। उनके द्वारा अपने कार्य में घोर शिथिलता बरते
जाने का मामला जांच में आया है।