ONLINE attendance के मुद्दे पर पंद्रह सदस्य समिति बन चुकी है ~
समिति में अधिकतर वही पैरवी कर रहे हैं जिन्हें स्कूल मर्जर से कोई दिक्कत नहीं थी but things bygone be bygone ।
अधिकारी न्यायालय का सहारा लेकर इस मुद्दे पर कर्मचारियों के लिए online attendance ज़बरन लादना चाहते हैं क्योंकि इसकी हक़ीक़त में ये है कि केंद्र सरकार द्वारा इसकी monitoring की जाती है जिसमें अधिकारियों/कर्मचारियों के द्वारा online attendance में उत्तर-प्रदेश के हालात बहुत ही ख़राब थे।
वास्तविक परिस्थितियाँ favourable नहीं हैं जिनको अनुकूल बनाने के लिए कम से कम दस वर्षों का समय लगेगा जिसमें infrastructure से लेकर internet आदि की सुविधाएँ शामिल हैं, फिर किसी चूक के पीछे किस अधिकारी की जवाबदही तय हो ये भी नहीं पता है क्योंकि सरकार के पास बहुत बहाने हैं जबकी हक़ीक़त ये है कि ऊपर से नीचे तक जब अधिकारियों की ग़लती हो तो भी office order में यही कहते हैं कि इसके प्रति उत्तरदायी कौन?
फ़िलहाल समिति में ये रखा जाएगा कि पूरे दिन में कभी भी attendance दे दीजिए कोई कार्यवाही नहीं और थोड़े दिन बाद सब वैसे ही होगा जैसे ये चाहते हैं, अब निर्भर करता है कि पुरानी माँगों को लेकर क्या समिति के सदस्य जो शिक्षकों के रहनुमा बनकर जा रहे हैं उन पर अडिग रहेंगे या मांडवाली करके लागू करवाएँगे, ऐसा कहने के लिए इसलिए मजबूर हूँ क्योंकि इतिहास इनका काफ़ी कुछ कहता है।
वास्तविक स्थिति को लेकर ये अवश्य कहें कि attendance लखनऊ जाती है शिक्षक की fault के बिना अगर attendance में default हुआ तो फिर शिक्षक क्या करेगा?
शिक्षकों के बीच में वैमनस्य फैलेगा क्योंकि पहले पहुँचने वाले को tablet late मिला तो आफ़त आ जाएगी, शिक्षण कार्य का माहौल ख़राब होगा इसके अलावा ब्लॉक से लेकर जिले के किसी भी अधिकारी के पास इसका कोई उत्तर न होगा क्योंकि सब लखनऊ से होना है, शिक्षक केवल कार्यालय के चक्कर लगाएगा और समय आने पर जो इस वर्ष सीतापुर में हुआ है (जो कि नहीं होना चाहिए था, मैं हिंसा का बिलकुल समर्थक नहीं हूँ) वैसा माहौल बनेगा ।
या तो पहले माँगों को माना जाए या फिर इसको लम्बे समय तक ठंडे बस्ते में रखा जाए, न्यायालय हम देख लेंगे क्योंकि अधिकारियों के हाथ में बेसिक है इसलिए NECK To NECK बात करें बाक़ी श्रय तो सब ले ही लेंगे।
#rana
