बेटी परिवारिक संपत्ति में हिस्सा मांग सकती है — भले ही पिता ने सालों पहले समझौता किया हो | दिल्ली हाई कोर्ट का अहम फैसला
भारत में बेटियों के संपत्ति अधिकारों को लेकर अक्सर भ्रम और विवाद देखने को मिलता है। बहुत से लोग मानते हैं कि यदि पिता या परिवार के सदस्यों ने पहले ही किसी तरह का समझौता कर लिया हो, तो बेटी भविष्य में अपनी दावेदारी नहीं कर सकती।
लेकिन दिल्ली हाई कोर्ट का एक हालिया फैसला इस सोच को बदलने वाला है।
कोर्ट ने स्पष्ट किया है कि पिता द्वारा पहले किया गया समझौता (Settlement/Compromise) बेटी के कानूनी अधिकार को खत्म नहीं कर सकता, खासकर तब जब बेटी उस समझौते की पक्षकार न रही हो।
⭐ फैसला किस मामले में आया?
यह फैसला Sanjay Gupta v. Sonakshi Gupta (FAO(OS) 37/2025) मामले में आया।
इस मामले में बेटी ने परिवार की HUF (संयुक्त हिंदू परिवार) संपत्ति में अपने हिस्से का दावा किया था।
बेटी का पक्ष:
2005 के संशोधन के बाद उसे कॉपार्सनरी अधिकार मिला।
वह 2009 में बालिग हुई और अब पिता की संपत्ति में अपना हिस्सा मांग सकती है।
पिता का पक्ष:
साल 2006 में परिवार में पहले से ही संपत्ति विवाद का समझौता हो चुका था।
इसलिए बेटी की नई दावेदारी मान्य नहीं होनी चाहिए।
⚖️ दिल्ली हाई कोर्ट ने क्या कहा?
दिल्ली हाई कोर्ट की खंडपीठ ने कहा:
✔️ बेटी समझौते से बाध्य नहीं है
क्योंकि वह उस समय नाबालिग थी और समझौते की पक्षकार नहीं थी, इसलिए उसका कानूनी अधिकार समाप्त नहीं होता।
✔️ कॉपार्सनरी अधिकार से बेटी को बराबरी का हिस्सा – बेटे के समान
2005 के संशोधन के बाद, बेटी को HUF संपत्ति में बेटे जितना ही अधिकार मिलता है।
✔️ पहले समझौते के आधार पर बेटी का दावा खारिज नहीं किया जा सकता
अगर समझौते में तथ्य विवादित हों या बेटी उसमें शामिल न रही हो, तो दावा पूरी तरह सुनवाई योग्य है।
📜 2005 का संशोधन — जिसने बदला बेटियों का भविष्य
Hindu Succession Act, 1956 में 2005 में हुआ संशोधन बेटियों के लिए बहुत बड़ा बदलाव था:
बेटी को जन्म से ही कॉपार्सनर का दर्जा
HUF में पूर्ण और बराबर अधिकार
विवाहित बेटियों के भी समान अधिकार
पिता की संपत्ति पर बेटों के बराबर हिस्सा
इस संशोधन के बाद अदालतें लगातार बेटियों के अधिकारों को मज़बूती दे रही हैं।
💡 इस फैसले से आम लोगों के लिए क्या सीख है?
✔️ पिता का पुराना समझौता बेटी का हक नहीं रोक सकता
जब तक बेटी उस समझौते की पार्टी न हो, अधिकार समाप्त नहीं होते।
✔️ बेटी जब चाहे अपना हिस्सा मांग सकती है
बालिग होने के बाद वह कानूनी दावा कर सकती है।
✔️ कॉपार्सनरी अधिकार बहुत मजबूत है
यह अधिकार सिर्फ एक समझौते से खत्म नहीं किया जा सकता।
✔️ संपत्ति विवाद में बेटियों को समानता का अधिकार
अदालतें अब बराबरी के अधिकार को कड़ाई से लागू कर रही हैं।
📝 निष्कर्ष
दिल्ली हाई कोर्ट का यह फैसला समाज के लिए एक स्पष्ट संदेश है:
"बेटी भी HUF संपत्ति की बराबर वारिस है।
पुराने समझौते उसके अधिकार को खत्म नहीं कर सकते।"
यह निर्णय बेटियों के संपत्ति अधिकारों को और भी मजबूत बनाता है और यह सुनिश्चित करता है कि कानूनी समानता
केवल किताबों में नहीं, बल्कि व्यवहार में भी लागू हो।

