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Friday, March 29, 2024

निजी प्रकाशकों ने 30% महंगी की किताबें: एनसीईआरटी में किताबों का सेट 1500 के भीतर जबकि निजी प्रकाशकों की किताबें छह से आठ हजार में

 लखनऊ। नए सत्र में निजी प्रकाशकों ने किताब-कॉपियों के दाम 30 फीसदी तक बढ़ा दिये हैं। विषयवार प्रति किताब के दाम में 20 से 100 रुपये तक इजाफा हुआ है। कापियों व रजिस्ट्रर में पांच से 12 रुपये तक दाम बढ़ाये हैं। बाजार में निजी प्रकाशकों की किताबें एनसीईआरटी के मुकाबले पांच गुना से ज्यादा महंगी हैं। एनसीईआरटी में 10वीं और 12वीं की किताबों का सेट 1500 के भीतर मिल रहा है। जबकि निजी प्रकाशकों की किताबें छह से आठ हजार के बीच में मिल रही हैं। निजी स्कूलों में कक्षा प्ले वे से 12वीं के बच्चों को पढ़ाने वाले प्रति बच्चा अभिभावकों की जेब पर 600 से 2000 हजार रुपये का अतिरिक्त बोझ बढ़ गया है।




सीबीएसई, आईसीएसई, आईएससी बोर्ड और यूपी बोर्ड के निजी स्कूलों ने नया सत्र शुरू कर दिया है। यूपी बोर्ड के वित्तविहीन स्कूल और सीबीएसई व सीआईएससीई स्कूलों के प्रबंधक एनसीईआरटी के किताबों के बजाय निजी प्रकाशकों की किताबों से बच्चों की पढ़ाई करा रहे हैं। यह किताबें स्कूलों द्वारा नामित पुस्तक विक्रेताओं के यहां मिलती हैं। स्कूलों से किताब-कॉपियों की सूची के साथ नामित बुक डिपो के पर्चे भी दे रहे हैं। बाजार में किसी अन्य दुकान पर यह किताबें नहीं मिलतीं।


प्रिंटिंग सामग्री हुई महंगी

सीतापुर रोड स्थित गुप्ता पुस्तक डिपो के सचिन का कहना है कि प्रिटिंग समेत कई चीजों के दाम बढ़े हैं। निजी प्रकाशकों ने दाम बढ़ाए हैं।


मुनाफे के लिए हर बार बदल देते हैं किताब


यह स्कूल निजी प्रकाशकों की किताबें खुद तय करते हैं। मुनाफे के लिए हर बार किताबें बदल दी जाती हैं। सीआईएससीई बोर्ड में नर्सरी में किताब और कापियों का सेट 3500 रुपये में दे रहे हैं। जबकि बीते साल इसकी कीमत तीन हजार के भीतर थी। कक्षा तीन में किताब कॉपियों का सेट 6000 में मिल रहा है। बीते सत्र में यह सेट 5000 हजार था। वहीं सीबीएसई में कक्षा चार का सेट 6500 में दे रहे हैं। वहीं 10 वीं कक्षा मेंसेट 10 हजार और 12 वीं का सेट 12 हजार तक है पिछले साल यह सेट 10 हजार के भीतर था।


सरकार किताबों के दाम तय करे


सरकार को चाहिए कि किताबों के दाम तय करे। एनसीईआरटी की किताबें सभी बोर्डों के लिए लागू कराये। स्कूलों के प्रबंधक मुनाफे के लिए हर बार किताबें बदल देते हैं। यह खुद प्रकाशकों के नाम तय करने के एवज में मोटा कमीशन लेते हैं। इसका असर अभिभावकों पर पड़ता है। इस पर रोक लगनी चाहिए।


प्रदीप कुमार श्रीवास्तव, अध्यक्ष, अभिभावक कल्याण संघ



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