एक शिक्षक की कलम से, चमात्कारी बेसिक शिक्षक
कांधला। बेसिक शिक्षा जहाँ एक और समाज के नजरिये से अपनी छवि धूमिल
कर चुकी है वही हमारा शिक्षक इस छवि को निरंतर सुधारने मे कोई कोताही नही बरत
रहा व निरंतर सुधार की और अग्रसरित है, और उसके इन्ही प्रयास से उसको नित नए
नवीन चमत्कार करने पड़ रहे है। जिसका उदाहरण अभी वार्षिक परीक्षा के दौरान
देखने को मिला। प्रदेश स्तर से वार्षिक परीक्षा कार्यक्रम जारी किया गया, 27 मार्च
को वार्षिक परीक्षा सम्पन्न कराई गयी... 28 को एक दिन मे कॉपीयों की जाँच कर
परीक्षा फल बच्चों को आवंटन करने हेतु सभी को आदेशित किया गया जबकि उस
दिन तक विभाग द्वारा प्रगति पत्र (रिजल्ट कार्ड) उपलब्ध नही कराये गए। 29 मार्च
का गुड फ्राइडे का अवकाश और 30 को रिजल्ट देना शायद किसी कल्पना के
अतिरिक्त कुछ कहा न जा सकेगा..... नया सत्र... नई जिम्मेदारी और नये चमत्कार
करने की जिम्मेदारी भी बेसिक शिक्षक के मजबूत कंधो पर टिक गयी है जिसमे उसे
हरेक वर्ष 20% नवीन नामांकन की वृद्धि तो करनी ही है चाहे उस गांव मे उतने
बालक हो या न हो... इसके अतिरिक्त पहली कक्षा मे छवर्ष पूर्ण कर चुके बच्चों का
नामांकन करना चुनौतीपूर्ण रहेगा क्योंकि यदि किन्ही कारणों से कोई बालक छवर्ष
जुलाई 2024 तक पूर्ण नही कर पायेगा उसको अगले वर्ष (2025) तक इंतजार
करना होगा... ऐसे मे क्या वह बालक शिक्षा से दूर नही जायेगा ? या किसी प्राइवेट
संस्था की गोद मे चला जायेगा जहाँ से उसे पुन-वापस (PAN नंबर सहित) लाना
चमत्कारी होगा... चमत्कार यही समाप्त नही होगा.... क्योंकि आंगनवाड़ी केंद्र जहाँ
मात्र बच्चों के नामांकन कागजो पर है... व धरातल पर मात्र धरातल ही नजर आता
है, वहां से बच्चों को अपने विद्यालयों से लाना भी चमत्कारी सिद्ध होगा..... शायद
चुनौतिया यही कम नही होंगी क्योंकि परिषद के विद्यालयों मे नामांकित बालक इसी
माह अपने अभिभावकों के साथ गेहूं कटाई मे सहयोग देंगें व विद्यालय से लगभग
एक माह दूर हो जायेंगे, ऐसे मे उनको विद्यालय मे 80% की उपस्तिथि दर्शाना यह भी
चमत्कार से कम नही होगा.....।

