दुर्गावती, एक संवाददाता। सरकार द्वारा शिक्षा व्यवस्था को सुदृढ़ बनाने के लिए विभिन्न तरह की योजनाएं चलाई जा रही है। इसके बाद भी प्रखण्ड के प्राइमरी स्कूल मछनहटा में शिक्षक व छात्र जर्जर भवनों के बीच बैठकर अध्ययन- अध्यापन करने को मजबूर हैं। इस प्राइमरी स्कूल का शिलान्यास 17 फरवरी 1992 में हुआ था। गांव के बच्चों व शिक्षकों के अध्ययन
अध्यापन के लिए तीन भवन बनाया गया था। अब यह स्कूल भवन काफी जर्जर हो गया है। इस स्कूल का एक भवन विद्यालय के उपस्कर आदि रखने के लिए स्टोर के काम में आता है। तथा दूसरे रुम में मध्यान भोजन बनता है एवं तीसरे रूम व बरामदे में कक्षा एक से पांचवीं वर्ग का पठन-पाठन होता है। ऐसे में एक ओर जहां इस विद्यालय में भवनों की भी कमी दिखती है। वहीं दूसरी तरफ पुराने हो चले भवन के झड़ते छज्जे व दिवारो के प्लास्टर साफ झलकते हैं। दीवारो में उभरती दरारें व बरामदे के छज्जे की टूटी पटिया विद्यालय भवन की जर्जरता को बयां करती है। ऐसे में पठन-पाठन के दौरान भी शिक्षक व छात्रों में हादसे का भय बना रहता है। बारिश शुरू होते ही छज्जों से झरने
तरह गिरता हैं पानी : की दुर्गावती। प्राइमरी स्कूल मछनहटा के इस जर्जर भवन की हालत यह है कि बारिश शुरू होते ही छत के छज्जों से झरने की तरह पानी गिरना शुरू हो जाता है। रास्ते के अभाव में बच्चे घास फूस के बीच खेतों की मेढ़ पकड़कर स्कूल जाते हैं। स्कूल की बाउंड्री वाल भी अभी तक नहीं बनी है। भवन के अभाव में बच्चे बरसात, धूप तथा ठंड में सुरक्षित जगह खोजने को मजबूर होते हैं। इस स्कूल में नामांकित बच्चों की संख्या 54 है। कक्षा एक से पांचवीं तक की पढ़ाई होती है। लेकिन गांव के अभिभावक अपने बच्चों को पढ़ाई के लिए बाहर भेजते हैं । इस स्कूल के जर्जर होने की वजह से हमेशा हादसे की आशंका बनी रहती है। इस संबंध में पूछे जाने पर मछनहटा विद्यालय के प्रभारी प्रधानाध्यापक अनिल कुमार कहते हैं कि भवन की छत भी जर्जर है जो कभी भी गिर सकता है। अक्सर छत का प्लास्टर गिरता रहता है, जिससे स्कूल में पढ़ने पढ़ाने वाले बच्चों व शिक्षकों में हमेशा हादसे की आशंका बनी रहती है। इतना ही नहीं बरसात के समय छत से पानी भी टपकने लगता है। ऐसे में स्कूल के बेंच डेस्क भी पानी में भिंगकर खराब हो जाते हैं। जर्जर स्कूल होने के कारण गांव के अभिभावकों ने अपने बच्चों का नामांकन समीप के स्कूलों तथा अन्यत्र करा लेते हैं। स्कूल भवन की जर्जर हालत के लिए विभाग को पत्र भी लिखा गया है। लेकिन पुराने जर्जर भवन की जगह नया भवन का निर्माण कब होगा इसकी जानकारी नहीं है क्या कहते हैं गांव के ग्रामीण : गांव के ग्रामीण में हरि जी सिंह, बिरेंद्र प्रताप सिंह, उमेश सिंह, सियाराम यादव, अरविंद कुमार सिंह, संतोष कुमार सिंह, राजेश यादव श्रीनिवास सिंह आदि कहते हैं कि जर्जर भवन के चलते पठन पाठन के समय अक्सर हादसे का भय बना रहता है। खराब हो चुके स्कूल भवन से बरसात होने पर छज्जे से पानी टपकना शुरू हो जाता है। ग्रामीणों ने विभाग का ध्यान विद्यालय के जर्जर भवनों की ओर आकृष्ट कराया है।