सरकारी कर्मचारियों व सरकारी अध्यापक अपने बच्चों को सरकारी प्राथमिक विद्यालयों में क्यों नहीं पढ़ाते ?
पढ़ाते ही नहीं बल्कि सब कुछ करते है शिक्षक कुछ लोगों का कहना है की सरकारी कर्मियों के व सरकारी प्राथमिक विद्यालय के अध्यापकों के बच्चे सरकारी प्राथमिक विद्यालय में नहीं पढ़ते पढ़ेंगे जरूर पढ़ेंगे लेकिन उस से पहले सरकारी विद्यालय का इंफेस्ट्रॅक्चर भी निजी विद्यालय की तरह करें ताकि समी के बच्चे सरकारी प्राथमिक विद्यालय में पढ़े मिडिल क्लास जिसमे सरकारी अध्यापक भी है के बच्चे केंद्रीय विद्यालय, नवोदय, राजकीय इंटर कॉलेज, राजकीय डिग्री कॉलेज, राजकीय मेडिकल कॉलेज, राजकीय पॉलिटेक्निक कॉलेज, राजकीय इंजिनियरिंग कॉलेज जैत सरकारी
विश्वविद्यालय में पढ़ सकते है तो क्या सरकारी प्राथमिक विद्यालयों में नहीं पढ़ेंगे। जरूर पढ़ेंगे, सरकारी प्राथमिक विद्यालयों के शिक्षकों की योग्यता वही है जी केंद्रीय विद्यालय और नवोदय विद्यालय के शिक्षकों की है, जबकि निजी विद्यालय में तब भी डिग्री पर समझौता कर लिया जाता है आज तक निजी विद्यालयों में टेट या सीटीईटी पास होना आवश्यक योग्यता नहीं बना। दबी जबान में जनता यही फुसफुसाती है कि निजी विद्यालयो में सरकारी विद्यालयो जैसे योग्य शिक्षक नहीं है लेकिन सरकारी ने पढ़ाई नहीं होती। पढ़ाई होती है और खूब पढ़ाई होती है. लेकिन जब शिक्षक विद्यालय पर होते है। लेकिन जब शिक्षक राशन लाने जाए बीएलओ का काम करें, संचारी रोग की रैली निकाले और नेताओं के कार्यक्रमों में बच्चों को ले जाए, चुनाव कराये, जनगणना,
बालगणना करे, सामूहिक विवाह में डयूटी करे कॉवड यात्रा में ड्यूटी करें, किताबे लाये दर्जनों छळट की ट्रेनिंग करे और कई ऐसे ही गैर शैक्षणिक और दूसरे विभाग के कार्य करें तब उस दिन पढ़ाई बाधित होती है। क्या इसका जिम्मेदार शिक्षक है क्या शिक्षक सर्वशक्तिमान है कि एक साथ दो स्थानों पर उपस्थित हो जाए। अभी हाल ही में पूरे प्रदेश के अधिकारियों ने बेसिक के स्कूल की सघन जाँच की, पूरे प्रदेश के लगभग 92 स्कूल की जाँच हुई, लेकिन 6 लाख शिक्षकों में 99 से अधिक शिक्षक उपस्थित मिले ।इसके बावजूद भी 150 करोड़ रुपये खर्च करने की क्या आवश्यकता पड़ गयी, शिक्षकों के उपस्थिति के जाँच के लिए इतना अविश्वास क्यों शिक्षकों पर, क्या आपने कभी इतने वृहद स्तर पर जॉच किसी अन्य विभाग की भी करवाई है, क्या अन्य विभाग में डिजिटल उपस्थिति की आवश्यकता नहीं।
आज भी अधिकांश सरकारी विद्यालयों में बाउंडरीवाल नहीं विद्यालयों में सीट बेच नहीं है, क्लास या ऑफिस में ही दिखाने के लिए पुस्तकालय बनी है, अलग कमरे नहीं है। 2020 के कमरों में एक पंखा है जो केवल दिखता है कि पंखा चल रहा है। खिडकियों दरवाजे टूटे हैं, पेयजल की उचित व्यवस्था नहीं, विद्यालय तक पहुँचने के लिए अच्छी सड़क नहीं, सभी कक्षाओं को अलग अलग बैठने के लिए कमरे नहीं, सभी कक्षाओं के लिए पर्याप्त शिक्षक नही, विद्यालयों में सफाई कर्मी सफाई करने जाते नहीं, चपरासी, बाबू नहीं लेकिन 150 करोड़ रुपये खर्च कर दिये टैबलेट में। सीट बेच आ जाता तो तपती गर्मी और जानलेवा ठंड में बच्चे जमीन पर चटाई पर नहीं बैठते । आप पहले सरकारी विद्यालयों को निजी विद्यालयों की तरह, संसाधन युक्त बना दीजिये, फिर करिये डिजिटल हमें कोई आपत्ति नहीं। सुरेंद्र गुप्ता दैनिक बुद्ध का संदेश