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Saturday, November 22, 2025

रसायनों से कुंद हो रहे किसानों के दिमाग, सोचने-समझने की खत्म हो रही क्षमता

 रसायनों से कुंद हो रहे किसानों के दिमाग, सोचने-समझने की खत्म हो रही क्षमता

 दूसरों का पेट भरने के लिए किसान की कोशिश रहती है कि वे ज्यादा से ज्यादा अनाज पैदा करें। वे फसलों को कीटों से बचाने के लिए रसायनों का इस्तेमाल करते हैं। लेकिन ये रसायन उनके लिए ही मुसीबत बन रहे हैं। इससे किसानों की सोचने-समझने की क्षमता खत्म हो रही है। वे अवसाद की चपेट में भी आ रहे हैं।



कोलकाता स्थित आईसीएमआर सेंटर फॉर एजिंग एंड मेंटल हेल्थ ने पूर्व बर्द्धमान जिले में किए एक अध्ययन में यह नतीजा निकाला है। इस अध्ययन में 808 किसानों के स्वास्थ्य की विभिन्न मानकों पर दो चरणों में जांच की गई। इसमें नतीजा निकला कि 18.9 फीसदी ग्रामीण किसान सोचने-समझने की कम क्षमता, अवसाद और गति विकार से ग्रस्त पाए गए। शोधकर्ताओं ने 808 किसानों की जांच में 180 को इन विकारों से प्रभावित पाया। इनमें से 101 लोग समझने की क्षमता, 16 लोग अवसाद, 12 लोग गति विकार तथा 52 लोग ऐसे थे, जो सोचने-समझने की कम क्षमता और अवसाद दोनों की चपेट में थे। शोधकर्ताओं ने कहा कि इसी आयु वर्ग में शहरी क्षेत्रों में समझने की ताकत और अवसाद से ग्रस्त लोगों का प्रतिशत 8.8 से 10 फीसदी के बीच है। ग्रामीण क्षेत्रों में बढ़ा हुआ प्रतिशत स्पष्ट रूप से कीटनाशकों के स्वास्थ्य पर प्रभाव को दर्शाता है।



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