जब बच्चों के लिए ठंड असहनीय है, तो शिक्षकों के लिए क्यों नहीं?
जनपद में अत्यधिक शीतलहर और घने कोहरे के कारण कक्षा 1 से 8 तक के छात्र-छात्राओं के लिए अवकाश घोषित किया गया। यह निर्णय निस्संदेह बच्चों के स्वास्थ्य और सुरक्षा के हित में है। परंतु इसी आदेश में शिक्षकों एवं अन्य स्टाफ को विद्यालय में उपस्थित रहने का निर्देश दिया गया, जो कई प्रश्न खड़े करता है।
सबसे पहला और मूल प्रश्न यह है कि जब मौसम की परिस्थितियाँ इतनी गंभीर हैं कि बच्चों को विद्यालय बुलाना सुरक्षित नहीं माना गया, तो क्या वही परिस्थितियाँ शिक्षकों के लिए सुरक्षित हो जाती हैं? क्या ठंड, कोहरा और शीतलहर का प्रभाव केवल बच्चों पर ही पड़ता है, शिक्षकों पर नहीं?
अधिकांश शिक्षक दूर-दराज़ के ग्रामीण क्षेत्रों से प्रातःकाल विद्यालय पहुँचते हैं। घने कोहरे में यात्रा करना न केवल कठिन बल्कि जोखिमपूर्ण भी होता है। दुर्घटनाओं की संभावना बनी रहती है, फिर भी शिक्षकों को अनिवार्य रूप से विद्यालय बुलाया जाता है। यह व्यवस्था मानवीय संवेदनाओं के विपरीत प्रतीत होती है।
पिछले दिनों शिक्षकों ने BLO - SIR जैसे महत्वपूर्ण शासकीय कार्यों में अपनी जिम्मेदारी पूरी निष्ठा से निभाई। यहाँ तक कि रविवार जैसे अवकाश के दिन भी शिक्षकों को विद्यालय आकर कार्य करना पड़ा। उस समय न तो मौसम की प्रतिकूलता देखी गई और न ही शिक्षकों के पारिवारिक दायित्वों पर विचार किया गया। शिक्षकों ने बिना किसी शिकायत के अपना कर्तव्य निभाया।
विडंबना यह है कि जब अवकाश की घोषणा होती है, तो शिक्षक उससे वंचित रह जाते हैं। इससे भी अधिक पीड़ादायक स्थिति तब उत्पन्न होती है, जब इन्हीं तथाकथित छुट्टियों को लेकर समाज में शिक्षकों को बदनामी का सामना करना पड़ता है। आम धारणा बना दी जाती है कि शिक्षक अनावश्यक छुट्टियाँ लेते हैं, जबकि वास्तविकता यह है कि उन दिनों भी शिक्षक विद्यालय, प्रशासनिक या अन्य शासकीय कार्यों में लगे रहते हैं।
जब छात्र विद्यालय में उपस्थित नहीं होते, तब शिक्षकों की अनिवार्य उपस्थिति का औचित्य भी समझ से परे है। शिक्षकों का मुख्य दायित्व शिक्षण है, और जब शिक्षण कार्य स्थगित है, तो केवल औपचारिक उपस्थिति के लिए जोखिम उठाना कितना उचित है, इस पर गंभीर विचार आवश्यक है।
यह लेख किसी टकराव की भावना से नहीं, बल्कि एक सकारात्मक और न्यायपूर्ण व्यवस्था की अपेक्षा के साथ लिखा गया है। प्रशासन से यह विनम्र अनुरोध है कि निर्णय लेते समय शिक्षकों को भी समान संवेदनशीलता के साथ देखा जाए। बच्चों के साथ-साथ शिक्षकों के स्वास्थ्य, सुरक्षा, सम्मान और मनोबल का भी उतना ही महत्व है।
यदि परिस्थितियाँ अवकाश योग्य हैं, तो वह अवकाश सभी के लिए होना चाहिए। शिक्षकों को केवल व्यवस्था का हिस्सा नहीं, बल्कि सम्मान के योग्य संवेदनशील नागरिक के रूप में देखा जाना चाहिए.......

