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Thursday, February 6, 2025

शिक्षामित्रों की सेवानिवृत्ति 62 साल पर हो, छुट्टियां भी बढ़ाई जाएं

 शिक्षामित्रों की सेवानिवृत्ति 62 साल पर हो, छुट्टियां भी बढ़ाई जाएं

ले के अलग अलग स्कूलों में 3471 शिक्षामित्र सेवाएं दे रहे हैं। यह समय से स्कूल पहुंचते और शिक्षण कार्य करते हैं। अपना मूल काम समय और जिम्मेदारी से निपटाने के बाद भी यह समस्याओं से जूझ रहे हैं। इनके सामने सबसे बड़ी समस्या सेवानिवृत्ति की आयु को लेकर है। संदना में एकत्र हुए शिक्षामित्रों ने बताया कि उनको 60 साल की उम्र में सेवानिवृत्त कर दिया जाता है जबकि अध्यापकों की सेवानिवृत्ति की उम्र 62 साल है। कम वेतन मिलना और दो साल पहले सेवानिवृत्त कर देना उचित नहीं है। इन्होंने मांग रखी कि शिक्षकों की तरह इनकी भी सेवानिवृत्ति की आयु को 62 साल किया जाना चाहिए। इसके अलावा इनके सामने दूसरी सबसे बड़ी समस्या स्वास्थ्य और अवकाश को लेकर है। बताया कि बीमार पड़ने पर इनके लिए मेडिकल लीव की कोई सुविधा नहीं है। साल में 11 कैजुअल लीव मिलती है, जिसका उपयोग चाहे आकस्मिक स्थिति में कर लो या फिर बीमार पड़ने पर।



इसके अलावा यदि किसी दिन अवकाश ले लिया तो मानदेय से कटौती हो जाती है। इतना ही नहीं इन्होंने स्वयं के बीमार आदि पड़ने पर उस दौरान होने वाले खर्च की भरपाई भी स्वयं से होना बताया है। बताया कि इनको किसी भी स्वास्थ्य बीमा से नहीं जोड़ा गया है। यदि किसी बीमा योजना से इनको जोड़ लिया जाए तो स्वास्थ्य बिगड़ने के समय होने वाले अतिरिक्त खर्च से इनका बचाव हो जाएगा। इसके अलावा बीमारी के लिए मेडिकल लीव की व्यवस्था भी होनी चाहिए। बातचीत में बताया कि बीमारी के दौरान अगर सीएल खत्म हो गई और अवकाश ले लिया तो मानदेय के कटौती हो जाती है। इनका कहना है कि मेडिकल लीव और स्वास्थ्य बीमा की व्यवस्था हो जाए तो उनकी समस्याएं कुछ कम हो जाएंगी।


लगी रहती भविष्य की चिंता: शिक्षामित्रों के लिए पदोन्नति की व्यवस्था का अभाव एक बड़ी समस्या है। शिक्षामित्रों को शुरुआती पद पर ही वर्षों तक कार्य करना पड़ता है, क्योंकि उनके लिए किसी प्रकार की पदोन्नति नीति निर्धारित नहीं की गई है। इसकी वजह से उनकी नौकरी में विकास की संभावनाएं सीमित हो जाती हैं। पदोन्नति न होने से मनोबल में गिरावट आती है। शिक्षामित्र यह महसूस करते हैं कि उन्हें मेहनत करने के बाद भी करियर ग्रोथ का अवसर नहीं मिलता। पदोन्नति न होने से वेतन में भी अपेक्षित वृद्धि नहीं होती। नियमित शिक्षकों के समान कार्य करने के बावजूद शिक्षामित्रों को पद और वेतन दोनों में पीछे रखा जाता है। पदोन्नति की कोई व्यवस्था न होने से शिक्षामित्रों को अपने पेशेवर भविष्य की चिंता बनी रहती है।


अन्य कामों से बढ़ रहा दबाव: इनका कहना है कि शैक्षणिक कार्यों के अलावा कई अन्य कामों की जिम्मेदारी भी इनको दी जाती है। शिक्षामित्रों के लिए कार्यभार में वृद्धि एक गंभीर समस्या बन चुकी है। शिक्षण के अलावा उन्हें कई गैर-शैक्षणिक कार्यों में भी लगाया जाता है, जिससे उनकी प्राथमिक जिम्मेदारी यानी बच्चों की शिक्षा प्रभावित होती है। इनका कहना है कि किसी अन्य काम में लग जाने से शैक्षणिक गुणवत्ता में गिरावट आती है। शिक्षण के लिए समय कम बचने के कारण कक्षाओं की प्रभावशीलता प्रभावित होती है। इन्होंने बताया कि जनगणना, मतदाता सूची अद्यतन, बीएलओ, सर्वेक्षण, मिड-डे मील प्रबंधन जैसे कार्यों में शिक्षामित्रों को शामिल किया जाता है। जो कि गलत है। पढ़ाई के साथ-साथ प्रशासनिक जिम्मेदारियों का दबाव शिक्षामित्रों के मानसिक स्वास्थ्य पर नकारात्मक प्रभाव डालता है। मुख्य रूप से शिक्षण कार्य के लिए नियुक्त शिक्षामित्र अन्य कार्यों में लगाए जाने से अपने पेशे से असंतोष महसूस करते हैं।

शिक्षामित्रों की सेवानिवृत्ति 62 साल पर हो, छुट्टियां भी बढ़ाई जाएं Rating: 4.5 Diposkan Oleh: Updatemarts

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